“रानी कमलापति” कौन थी? जिनकी याद में भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदल दिया गया-

हाल ही में मध्यप्रदेश के भोपाल में हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर “रानी कमलापति” रेलवे स्टेशन रख दिया गया है. रेलवे स्टेशन का नाम बदलने के साथ ही इतिहासकारों और आम जनता के बीच में मध्यप्रदेश में कमलापति के इतिहास को लेकर बहस छिड़ गई है. इस बारे में कई लोगों ने अपने अलग-अलग मत दिए हैं, जिसके बाद लोगों में राजनीतिक बहस भी छिड़ चुकी है. लेकिन रेलवे स्टेशन का नाम बदलने के साथ ही रानी कमलापति के जीवन पर प्रकाश डाला जा रहा है, कई लोग यह जानने की चेष्टा कर रहे हैं कि आखिर रानी कमलापति का असल जीवन इतिहास क्या था?

कौन थी “रानी कमलापति”?- रानी कमलापति मध्यप्रदेश के भोपाल की एक गौरवान्वित रानी रही थी. यह गोंड साम्राज्य से तालुकात रखती थी और रानी कमलापति गोंड साम्राज्य की अंतिम रानी भी हुई थी. इतिहासकारों के अनुसार रानी कमलापति ने गोंड राजा निजाम शाह से विवाह किया था.

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कमलापति निजाम शाह की सातवीं पत्नी थी, और निजाम साहब की सबसे प्रिय रानी थी. निजाम शाह उस दौर में गिन्नौरगढ़ के राजा थे, इसीलिए कमलापति भी अपने पति निजाम शाह के साथ गिन्नौरगढ़ रहा करती थी. कुछ सालों तक गिन्नौरगढ़ पर शासन करने के बाद निजाम शाह के राज्य को उनके भतीजे आलम शाह की नजर लग गई थी.

भतीजा आलम शाह निजाम शाह का पूरा साम्राज्य हड़पना चाहता था, इसके लिए वह उन्हें मारने की कई योजनाएं बना चुका था. कुछ इतिहासकार तो यह भी कहते हैं कि आलम शाह रानी कमलापति की खूबसूरती का दीवाना भी था और उन्हें हासिल करना चाहता था. लेकिन रानी कमलापति बेहद तपस्विनी स्त्री थी, उनमें साहस और नीतियां कूट-कूट कर भरी थी.

जब हो गई “निजाम शाह” की मृत्यु:– आखिरकार निजाम शाह का भतीजा अपने मंसूबे में कामयाब हुआ और उसने मौका पाकर निजाम शाह के खाने में जहर मिला दिया. जहर देने की वजह से निजाम शाह की मौत हो चुकी थी, इसी के साथ आलम शाह ने उनके पूरे राज्य पर कब्जा कर लिया था. ऐसी स्थिति में रानी कमलापति को अपनी जीवन रक्षा करते हुए वहां से जाना पड़ा, परिणाम स्वरूप रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ भोपाल के कमलापति महल में रहने लगी.

अपने पति की मृत्यु से आहत रानी ने आलम शाह से बदला लेने की ठान ली. लेकिन रानी के पास ना तो फौज थी और ना ही पर्याप्त पैसे. बदले की आग में जल रही रानी कमलापति को अब किसी की सहायता की आवश्यकता थी. और इसके लिए उन्होंने अपने पुराने दोस्त अफगानी शासक मोहम्मद शाह से मदद मांगी. मोहम्मद शाह पहले मुगल सेना का हिस्सा हुआ करता था जहां से बाहर निकलने के बाद उसने जगदीशपुर पर आक्रमण करके उसे अपने कब्जे में ले लिया था और उसका नाम इस्लामनगर रख दिया था.

मोहम्मद शाह ने रानी कमलापति को एक लाख अशर्फीया उधार दी थी. जिनके सहारे रानी कमलापति ने एक बार फिर अपने राज्य पर हमला किया और आलम शाह को मार गिराया. उन्होंने अपने पति का बदला बखूबी लिया. कुछ समय बाद रानी ने मोहम्मद शाह को 50,000 अशर्फियां फिर लौटा दी. और बाकी धनराशि के रूप में उन्होंने मोहम्मद शाह को भोपाल का एक हिस्सा दे दिया था.

लेकिन इसके बाद रानी के साथ क्या हुआ? इसके पुख्ता प्रमाण इतिहासकारों के पास नहीं है. इस बारे में दो मत प्रचलित है, एक तो यह कि रानी कमलापति मोहम्मद शाह को अपना भाई मानती थी और जीवन भर उनके संरक्षण में रही थी. लेकिन यहां एक बड़ा सवाल पैदा यह होता है कि अगर रानी मोहम्मद शाह के संरक्षण में रही थी तो उनके बेटे नवल शाह का क्या हुआ?

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वहीं दूसरी ओर इतिहासकारों का कहना है कि कुछ समय बाद रानी की सहायता करने के पश्चात मोहम्मद शाह ने रानी के खिलाफ बगावत छेड़ी थी. मोहम्मद शाह की रानी पर बुरी नजर थी, जिसके बाद रानी कमलापति का बेटा नवल शाह अपने 100 सैनिकों की सेना लेकर मोहम्मद शाह के खिलाफ युद्ध करने लालघाटी की तरफ पहुंचा.

इस युद्ध में नवल शाह समेत सभी लोग मारे गए केवल 2 लोग जिंदा बचे. दोनों लोग घाटी पर चढ़े और उन्होंने काला धुआं निकालकर रानी को यह संकेत दिया कि हम युद्ध हार चुके हैं, और मोहम्मद शाह किसी भी समय किले पर पहुंच सकता है. जिसके बाद रानी ने अपने महल के बाहर स्थित एक छोटे से तालाब में कूदकर अपनी जान दे दी.