आखिर क्यों फेल हुई 3,000 करोड़ लागत वाली ‘सरदार वल्लभ भाई पटेल की मूर्ति “Statue Of Unity”?

जैसा कि हम सभी जानते हैं गुजरात के नर्मदा नदी के सरदार सरोवर बांध से 3 किलोमीटर दूर भारत की ही नहीं अपितु विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति “सरदार वल्लभभाई पटेल” की प्रतिमा “स्टैचू ऑफ यूनिटी” का उद्घाटन उनके जन्मदिन के अवसर पर 31 अक्टूबर 2018 को किया गया था.

इस मूर्ति का निर्माण कार्य 2013 में शुरू हुआ था जो 5 साल बाद 2018 में पूरा हुआ. निर्माण कार्य पूरा होने के बाद दिल्ली मेट्रो से लगाकर चेन्नई तक को मूर्ति का खूब प्रचार प्रसार किया गया था.

उद्घाटन के समय सरकार ने यह दावा किया था कि यह मूर्ति देश का गौरव सिद्ध होगी क्योंकि यह विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति है. इसके अलावा यह लाखों लोगों को रोजगार देगी साथ ही इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा.

उस समय यह भी दावा किया गया था कि यह मूर्ति प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ से ज्यादा की सरकारी आई देगी जिससे अर्थव्यवस्था सुधरेगी. इसके साथ ही सरकार ने इस मूर्ति का कुल खर्चा 3000 करोड़ बताया था,और यह कहा था कि कुछ ही सालों में यह मूर्ति सरकार को 3000 करोड़ से ज्यादा पैसे वसूल कर देगी.

क्या है “स्टैचू ऑफ यूनिटी” की खासियत ?– सरदार वल्लभभाई पटेल की यह महा मूर्ति 182 मीटर लंबी है, इसे 7 किलोमीटर दूरी से भी देखा जा सकता है. यह मूर्ति अमेरिका के “स्टैचू ऑफ लिबर्टी” से कई गुना बड़ा है. वर्तमान में यह विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति है. इसका निर्माण भारत के सबसे बेहतरीन कारीगरों ने मिलकर किया था इस दर्जे से भी यह मूर्ति खास है. भारतीय मजदूरों के साथ ही साथ इसमें 200 चीनी मजदूरों ने भी काम किया था.

मूर्ति के नीचे एक बड़ा शानदार म्यूजियम बनाया गया है. जिसमें एक से बढ़कर एक दुर्लभ चीजें रखी गई है. मूर्ति पर ठीक 135 मीटर ऊपर यानी कि सरदार वल्लभभाई पटेल की छाती पर एक बड़ी गैलरी का निर्माण किया गया है. जिससे कई किलोमीटर दूर सरदार सरोवर बांध और वहां पर उपस्थित सुंदर पहाड़ियां स्पष्ट दिखाई देती है.

यह मूर्ति 180 किलोमीटर प्रति घंटा की तेज हवा की रफ्तार भी सहन कर सकती है, इसके अलावा यह 6.5 तीव्रता का भूकंप भी बर्दाश्त कर सकती है. मूर्ति की इतनी खासियतों के कारण ही कुल मिलाकर इस मूर्ति में 3000 करोड़ रुपए का खर्च आया था.

क्यों हुआ “स्टैचू ऑफ यूनिटी” फेल ?– यदि सरकार के दावे की बात करें तो उद्घाटन के समय पर सरकार ने दावा किया था कि यह मूर्ति प्रतिवर्ष एक लाख करोड़ से ज्यादा का रेवेन्यू देगी. लेकिन क्या वास्तव में सरकार अपने दावे में कामयाब हुई है? वास्तव में यदि मूर्ति के निर्माण के बाद के एक वर्ष का डाटा देखा जाए तो इसे कुल 27 लाख पर्यटकों ने देखा था. जिन से मात्र 80 करोड़ रुपए का रेवेन्यू आया था.

जिसके बाद से यह लगातार आज तक कोरोनावायरस के कारण यह स्थल बंद रहा है. जिसके बाद से लगातार इस मूर्ति की कमाई गिरती जा रही है, इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि मूर्ति के निर्माण के समय लोगों में इसको देखने का विशेष उत्साह था जो दिनों दिन कम होता दिखाएं दे रहा है. इस वजह से लगातार इस मूर्ति की कमाई गिरती जा रही है.

इसके साथ ही प्रतिवर्ष मूर्ति के रखरखाव और मेंटेनेंस का खर्चा भी आता है जो 80 करोड़ से ज्यादा है. ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि यह मूर्ति कभी भी वह लागत वसूल नहीं कर पाएगी जो इसके निर्माण के समय लगी थी. यदि बात की जाए सरकार के रोजगार के दावों की तो यदि सरकार 3000 करोड़ रुपए का बजट लोगों को प्रत्यक्ष नौकरी देने में खर्च करती तो शायद आज देश के करोड़ों युवाओं का भविष्य कुछ और होता.

क्योंकि भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के लिए 3000 करोड रुपए मूर्ति में खर्च करना एक बड़ी बात है, ऐसे में केवल यह तभी फायदे का सौदा बताया जा सकता है जब मूर्ति लाख से ज्यादा कमाई करती हो. वर्तमान स्थिति में “स्टैचू ऑफ यूनिटी” के साथ ही यह बात सच होती दिखाई नहीं दे रही है. लेकिन हम उम्मीद करते हैं की लोगों में “स्टैचू ऑफ यूनिटी” को देखने का उत्साह ज्यादा बढ़े और यह मूर्ति अपनी लागत कमाई वसूल ले ताकि हमारे देश को किसी प्रकार के घाटे का सामना ना करना पड़े.