बहुचर्चित फिल्म KGF का पहला पार्ट साल 2018 में रिलीज हुआ था जिसे दर्शकों ने खूब प्यार दिया था. वही फिल्म का दूसरा हिस्सा केजीएफ (KGF) चैप्टर –2 कुछ समय पहले 14 अप्रैल 2022 को सिनेमाघरों में रिलीज हुआ.
इस फिल्म के रिलीज होने से पहले ही इसकी सफलता का अंकन किया जा चुका था और उम्मीदों के अनुसार ही फिल्म ने खूब कमाई भी की है. सोशल मीडिया पर लगातार फिल्म को लेकर इसकी चर्चा खूब हो रही है. वहीं अधिकतर लोग यह भी जानना चाहते हैं कि आखिर इस फिल्म की सच्ची कहानी क्या है?
जानिए KGF का पुरा नाम
आपको बता दें कि सिनेमाघरों पर मशहूर नाम KGF सोने की खदान से जुड़ा हुआ है और इसका पूरा नाम है ‘कोलार गोल्ड फील्ड्स’. इसका इतिहास बहुत पुराना और दिलचस्प है. बेंगलुरु के पूर्व में मौजूद बेंगलुरु चेन्नई एक्सप्रेस वे पर 100 किलोमीटर दूर केजीएफ (KGF) टाउनशिप स्थित है.
यह है कोलार गोल्ड फील्ड्स का सच्चा इतिहास
एक रिपोर्ट के मुताबिक सन् 1871 में ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्सगेराल्ड लेवली ने 1804 में एशियाटिक जनरल में छपे 4 पन्नों का एक आर्टिकल पढ़ा था उसमें कोलार में पाए जाने वाले सोने के बारे में बताया गया था. आर्टिकल लेवली के हाथ ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वाॉरेन का आर्टिकल लगा था.
जिसमें यह लिखा गया था कि साल 1799 की श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मारने के बाद कोलार और उसके आसपास के इलाके पर अपना कब्जा जमा लिया था. लेकिन कुछ ही सालों बाद ब्रिटिश शासकों ने इस जमीन को मैसूर राज्य को दे दिया गया. हालांकि कोलार की जमीन को सर्वे के लिए उन्होंने अपने पास ही रख लिया था.
इतिहासकारों के मुताबिक चोल साम्राज्य के लोग उस वक्त कोलार की जमीन में हाथ डालकर वहां से सोना निकाल लेते थे. जब इस बात का पता ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन को लगा तो उन्हें लगा कि गांव वालों को इनाम का लालच देकर सोना निकाल लिया जाए. इसीलिए वॉरेन ने सोने के बारे में उन्हें जानकारी देने वाले लोगों को इनाम देने की घोषणा की.
हाथ से निकाला जा सकता था सोना
आपको बता दें कि जॉन वॉरेन के यह घोषणा करने के कुछ ही दिनों बाद एक बैलगाड़ी में कुछ ग्रामीण जॉन वारेन पास आए. उस बैलगाड़ी में कोलार इलाके की मिट्टी लगी हुई थी. ग्रामीणों ने इसे पानी से धोया तो उसमें सोने के कुछ अंश दिखाई दे रहे थे.
गोरे ने इसकी जांच पड़ताल शुरू की और उसे पता चला कि कोलार के लोग जिस तरीके से हाथ से खोदकर सोना निकालते हैं उस से 56 किलो मिट्टी से गुंजभर सोना निकाला जा सकता था. ऐसे में अंग्रेजों को सूझा की तकनीक की मदद से तो इस मिट्टी से और ज्यादा सोना निकाला जा सकता है. जिसके बाद 1804 से 1860 के बीच इस इलाके में काफी रिसर्च और सर्वे हुए.
लेकिन अंग्रेजी सरकार को उससे कुछ भी नहीं मिला यहां तक की रिसर्च के चलते कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. जिसके बाद कई सालों के लिए इसकी खुदाई पर रोक लगा दी गई. लेकिन सालों बाद जब यह ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्सगेराल्ड लेवली ने 1871 में जॉन वॉरेन का लेख पढ़ा तो उसके मन में सोने को पाने का जुनून जाग चुका था.
लेवली ने शुरू किया खुदाई का काम
इसे पाने के लिए लेवली ने बैलगाड़ी में बैठकर बेंगलुरु से कोलार तक की 100 किलोमीटर की दूरी तय की और उसने 1873 में मैसूर के महाराजा से खुदाई के लिए अनुमति ली और 1875 में खुदाई शुरू भी कर दी.
जिसके बाद यहां बिजली की समस्या को दूर करने के लिए केजीएफ (KGF) में बिजली की सुविधा मुहैया करवाई गई. आपको बता दें यह भारत का पहला स्थान था जहां बिजली पहुंची.
बन चुका था सबसे खूबसूरत स्थान
आखिरकार यहां लंबी मशक्कत के बाद सोना निकालने का काम शुरू हुआ और मशीनों की मदद से 1902 में 95 फीसदी सोना निकलने लगा. यहां 30,000 खदान मजदूर काम करने लगे. इसी के चलते भारत सोने की खुदाई के मामले में छठे स्थान पर पहुंच गया. केजीएफ में सोना मिलने के बाद यहां की सूरत बदल गई और यहां ब्रिटिश अंदाज में घरों का निर्माण होने लगा. यह इलाका काफी ठंडा था इसलिए अधिकतर लोगों को यह माहौल पसंद आने लगा था. यह छोटा इंग्लैंड बन चुका था जहां हर प्रकार की सुविधा मुहैया करवाई गई थी.
2001 में बंद हुई खुदाई
यहां कुल 121 सालों में 900 टन सोना निकाला गया.जब 1947 में भारत आजाद हुआ तो भारत सरकार ने सभी खदानों पर अपना कब्जा किया और ‘भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड’ नाम की एक कंपनी इस काम को देखने लगी.
शुरुआत में सब ठीक रहा लेकिन धीमे धीमे कंपनी की हालत खराब हुई और साल 1979 तक कंपनी घाटे में गई यहां तक कि कंपनी के पास अपने मजदूरों को देने की सैलरी भी नहीं बची थी. 2001 के आते-आते खुदाई का काम बंद करवाया गया और खुदाई बंद होते ही कोलार गोल्ड फील्ड खंडहर में तब्दील हो गए.
केजीएफ (KGF) में खनन 121 सालों से भी ज्यादा समय तक चला जहां 2001 तक खुदाई होती रही. इससे तकरीबन 900 टन से ज्यादा सोना निकाला गया अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 900 टन आखिर कितने का होता होगा?