भागवत गीता सार: जब भाग्य साथ ना दें तो क्या करें?

जब जीवन में विपरीत परिस्थितियां आती है तो हमारा मन व मस्तिष्क बिल्कुल अशांत हो जाता है. यह वह समय होता है जब हमें जीवन की नाव डूबती हुई नजर आती है और हम कुछ भी नहीं कर पाते.

हमारे चारों ओर कोई हमारा समर्थन नहीं करता और हम बिल्कुल असहाय महसूस करते हैं. ऐसे में किस प्रकार से आगे बढ़ा जा सकता है? भगवान श्रीकृष्ण इस प्रश्न का उत्तर कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में अर्जुन से इस प्रकार देते हैं कि- “हे अर्जुन! जीवन में भूतकाल में जो हुआ और जो भविष्य काल में होना है उसकी चिंता करने का कोई लाभ नहीं है.

मनुष्य का ना तो भूत पर और ना ही भविष्य पर कोई वश है. मनुष्य के हाथ में केवल उसका वर्तमान काल होता है. और हमारे जीवन में कैसा होगा वह निर्भर करता है कि हम वर्तमान काल में क्या करते हैं?

सच्चे मन से अपने वर्तमान काल को अच्छा बनाने के लिए मेहनत कर रहे हैं और हमारी क्रियाओं से किसी का नुकसान नहीं कर रहे हैं तो हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है.

वास्तव में हमारे कर्म ही निर्धारित करते हैं कि हमारा भविष्य कैसा होगा? लेकिन यदि फिर भी हमारे साथ अनचाहा गलत व्यवहार हो रहा है तो हमें इसमें भी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. चिंता किसी भी चीज का समाधान नहीं है, इसके बजाय हम लोग कोशिश कर सकते हैं कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों को जीत लें.

कुछ लोग जीवन में थोड़ी सी विपरीत परिस्थितियां आने पर भी भयभीत हो जाते हैं और उनका ईश्वर तक से विश्वास हट जाता है. यदि आप हमेशा ईश्वर पर भरोसा करते हैं तो आपको चिंता की कोई आवश्यकता ही नहीं है. क्योंकि विधाता ने हर समस्या का समाधान उसके साथ ही भेजा है. इसलिए विपरीत परिस्थिति में केवल संयम और मेहनत की आवश्यकता है अन्य ईश्वर स्वयं समाधान करेंगे”.