जानिए भाई-दूज का त्यौहार क्यों मनाया जाता है? क्या है इसकी कहानी!

दीपावली का अंतिम त्योहार भाई दूज का‌ त्योहार है. गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन मनाए जाने वाला यह त्यौहार भाई बहन के आपसी बंधन का प्रतीक है. इस वर्ष भाई दूज का त्यौहार 6 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन सभी शादीशुदा बहनें अपने भाई को अपने घर भोजन पर आमंत्रित करती है. सबसे पहले उन्हें तिलक करती है, उन्हें एक नारियल देती है और फिर भोजन करवाकर उन्हें पान खिलाती है.

आइए जानते हैं इस त्यौहार के मनाने का मूल कारण-

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान सूर्य और उनकी पत्नी संज्ञा के दो संतानें हुई थी. पुत्र यम और पुत्री यमुना. जब देवी संज्ञा ने अपनी संतानों को जन्म दिया तब उनमें उनका तेज सहन करने की शक्ति नहीं थी, इसलिए भगवान सूर्यनारायण ने संज्ञा की छाया को दोनों संतानों के लालन-पालन में लगाया.

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संज्ञा की छाया ने दोनों संतानों का लालन-पालन किया लेकिन उन्हें उनसे कोई मोह नहीं था. इसी वजह से भाई यम और यमुना के बीच में असीम स्नेह था. समय के साथ जब यम और यमुना को अपने कार्यों में लीन होना पड़ा तत्पश्चात कई हजार वर्षों तक दोनों के बीच पर कोई आपसी भेंट नहीं हुई.

यमुना की असीम इच्छा थी की उनका भाई यम उनसे भेंट करें, लेकिन ऐसा संभव नहीं हो पा रहा था. कुछ समय पश्चात अपनी बहन की इच्छा का सम्मान करते हुए यम उनसे मिलने पहुंचे. आपके भाई को देखकर देवी यमुना अत्यंत प्रसन्न थी. उन्होंने अपने भाई का विधि विधान पूर्वक आदर सत्कार किया और उनका तिलक किया.

यम ने दिया था देवी यमुना को वरदान-

अपनी बहन के अप्रतिम प्रेम से प्रसन्न होकर यम ने यमुना से वरदान मांगने के लिए कहा. जिसके पश्चात यमुना ने उनसे कहा कि वरदान स्वरुप यदि आप कुछ देना चाहते हैं तो प्रतिवर्ष इसी दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया को आप प्रतिवर्ष मुझसे भेंट करने आएंगे.

इसके पश्चात यम ने अपनी बहन को प्रतिवर्ष इसी दिन भेंट करने का वरदान दिया, साथ ही यह भी कहा कि जो भी बहन अपने भाई को इस दिन अपने निवास स्थान पर आमंत्रित करके आदर सत्कार पूर्वक तिलक करके भोजन करवाएगी उसे यम की कुदृष्टि का सामना कभी नहीं करना पड़ेगा.

संसार इस दिन को “भाई दूज” के रूप में सदा मनाएगा. देवी यमुना ने भी इस पर कहा जो भी भाई बहन इस दिन यमुना स्नान करेंगे उन्हें अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ेगा. इसीलिए कई स्थानों पर भाई बहनों यमुना स्नान की प्रथा प्रचलित है. साथ ही यम देवता के वरदान के कारण ही इसे “यम द्वितीया” भी कहा जाता है.