कैसे 100 कौरवों को जन्म दिया था गांधारी ने ?

मित्रों “गांधारी” महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी. वह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र की पत्नी थी जो स्वयं जन्म से ही अंधे थे. गांधारी गंधार देश के राजा सुबल के पुत्री थी. वर्तमान में यह अफगानिस्तान का हिस्सा है अब गंधार का नाम “कंधार” हो चुका है. गांधारी स्वयं एक तपस्विनी महिला थी. अपने पति के जीवन की दुर्दशा देखकर उसने भी हमेशा के लिए अपनी आंखों पर पट्टी बांधने का निश्चय किया. गांधारी ने अंतिम समय तक आंखों पर पट्टी बांधे रखने का निश्चय किया था, जिसका उसने कठोरता से पालन भी किया.

जानिए आगे की कथा-विवाह उपरांत भी गांधारी को लंबे समय तक संतान प्राप्ति नहीं हुई थी. लेकिन वह सेवाभाव से परिपूर्ण थी. एक बार हस्तिनापुर में महर्षि वेदव्यास पधारे, गांधारी ने खूब श्रद्धा से उनकी सेवा की. गांधारी का यह मधुर सेवा भाव देखकर महर्षि वेदव्यास ने उसे सौ पुत्रों की प्राप्ति का वरदान दिया था. कुछ समय बाद जब गांधारी गर्भवती हुई तो धृतराष्ट्र और गांधारी के जीवन में खुशियों का ठिकाना नहीं था.

लेकिन 9 महीने बीत जाने के पश्चात भी उन्हें कोई संतान प्राप्ति नहीं हुई. ऐसा करते करते गांधारी के गर्भधारण को कुल 24 महीने बीत गए लेकिन फिर भी उसे कोई संतान नहीं हुई. अंत में व्याकुल होकर और किसी रोग के भय से चिंतित होकर गांधारी ने अपने गर्भपात की योजना बनाई. जानकार वेदों को बुलाकर उन्होंने गर्भपात की तैयारी कर ली. महर्षि वेदव्यास को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने हस्तिनापुर की ओर प्रस्थान किया.

जो वह गर्भ निकाला गया तो देखा कि वह मांस का लोहे के समान केवल एक पिंड था. किसी को भी उससे संतान प्राप्ति की कोई उम्मीद नहीं थी. महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर पहुंचे और उन्होंने समझाया कि 100 पुत्र प्राकृतिक तरीके से प्राप्त नहीं हो सकते इसलिए गांधारी को अपनी सभी संताने चमत्कारी रूप से प्राप्त होंगी. उन्होंने कहा की इस मांस पिंड पर कुछ जल छिड़का जाए.

उनके आदेशानुसार उस पर महर्षि की दिव्य दृष्टि में जल छिड़का गया. उसके पश्चात उस मांस पिंड के 101 टुकड़े हो गए. महर्षि ने घी से भरे 101 बर्तन मंगवाए और सभी टुकड़े उनमें डाल देने का सुझाव दिया. इसके बाद ही उन सभी बर्तनों को ढक दिया गया. कहा जाता है की वेदव्यास ने 2 वर्ष तक उन घी से भरे बर्तनों को एक एकांत स्थान पर रखवा दिया.

2 वर्ष के पश्चात ही सर्वप्रथम उस पात्र में से 1 पुत्र की प्राप्ति हुई जो कौरवों में सबसे बड़ा माना गया और उसका नाम “दुर्योधन” रखा गया. दुर्योधन के पश्चात ही दु:शासन,दु:सह,दु:शल, जल संघ, सम और आदि पुत्रों का जन्म हुआ. इसके अलावा उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति भी हुई जिसका नाम दु:शला रखा गया.

जिसके बाद हस्तिनापुर में खुशियों की लहर दौड़ गई, राजा धृतराष्ट्र भी सौ पुत्र प्राप्त करके अत्यंत गर्व महसूस कर रहे थे. लेकिन आंखों पर पट्टी होने और पति के अंधे होने के कारण गांधारी ने अपनी सभी संतानों की देखरेख का जिम्मा अपने भाई शकुनी पर डाल दिया था. शकुनी ने कभी भी अपने भांजों को सुनियोजित शिक्षा नहीं दी.

वह सदा ही उन्हें केवल राजगद्दी के लिए ललचाता रहा और अपनी बुरी नीतियां सिखाता रहा. उसने हस्तिनापुर की राज परिवार के बीच में इतनी गहरी खाई खोद दी थी जिसका अंजाम आखिर “महाभारत” था. सौ पुत्रों की माता होने के बावजूद भी महाभारत के युद्ध के पश्चात गांधारी एक भी पुत्र जीवित नहीं बचा, इसके अलावा गांधारी का दामाद जयद्रथ भी युद्ध में मारा गया था.