दीपावली के दूसरे दिन बनाई जाने वाली गोवर्धन पूजा अपने आप में एक विशेष महत्वपूर्ण त्योहार है. गोवर्धन पूजन की परंपरा श्री कृष्ण ने प्रारंभ की थी. मूल रूप से यह एक प्रकृति पूजा है, जिसकी स्थापना श्री कृष्ण ने प्रकृति को बचाने और जीवो की रक्षा करने के लिए की थी.जिसके बाद से ही गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है. एक प्रकार से ऐसा भी कहा जा सकता है कि यदि आपके मन में प्रकृति रक्षा हेतु कोई संकल्प नहीं है तो गोवर्धन पूजा से आपको कोई लाभ प्राप्त नहीं हो सकता. आइए इसके पीछे की कहानी विस्तारपूर्वक जानते हैं.
जानिए आखिर क्यों शुरू हुई थी गोवर्धन पूजा- बात कुछ जमाने की है जब सभी लोग बेहतर बारिश की अपेक्षा के लिए भगवान इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न चेष्टाएं करते थे. यानी कि हमारे समाज में उस समय यह प्रथा थी की दीवाली के दूसरे दिन भगवान इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए महायज्ञ और महाप्रसाद का भोग लगाया जाता था.
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इस कारण इंद्र देवता को बड़ा अभिमान हो गया कि यदि मैं वर्षा ना करूं तो संपूर्ण पृथ्वी के जीव अपना रक्षण नहीं कर पाएंगे. श्री कृष्ण ने भगवान इंद्र का यह अभिमान तोड़ने की ठानी. ब्रज मंडल में दिवाली के दूसरे दिन जब सभी लोग इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ और महाप्रसाद की तैयारियां करने लगे तब श्री कृष्ण ने अपने पिता से कहा कि यह इंद्रदेव की ओर से कोई आदेश है क्या?
हमारे क्षेत्र में वर्षा तब होती है जब वर्षा के बादल हमारे गोवर्धन पर्वत से टकराते हैं, यदि गोवर्धन ना हो तो बादल आगे चले जाएंगे और हमारे क्षेत्र में वर्षा नहीं होगी. हमारी गाय और सभी जीव गोवर्धन से ही अपना घास प्राप्त करते हैं इसके अलावा गोवर्धन से ही मीठा जल देने वाली नदियां निकलती है. तो हमें हमारी प्रकृति पूजा करनी चाहिए ना कि इंद्र देवता की.
इस बात पर भगवान श्री कृष्ण ने समस्त ब्रज वासियों को मना लिया और उन्हें इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा. भगवान इंद्र देवता को यह देख कर क्रोध आ गया और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा. उन्होंने तुरंत ही ब्रज मंडल पर एक बड़ा तूफान ला दिया. चारों ओर मूसलाधार वर्षा होने लगी और बाढ़ का स्वरूप लेने लगी.
लोग भय के मारे कांपने लगे तब श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत की ओर गए. वहां जाकर उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर धारण कर लिया. हर कोई यह देख कर अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहा था. तभी श्रीकृष्ण ने समस्त ब्रज वासियों को आह्वान दिया कि सभी लोग अपने सभी पालतू जीवों के साथ गोवर्धन पर्वत के नीचे रक्षण प्राप्त करें.
किसी के पास कोई चारा नहीं था इसलिए सभी बृजवासी हाथों हाथ गोवर्धन पर्वत के नीचे रक्षण हेतु दौड़ने लगे. श्री कृष्ण ने सभी लोगों की रक्षा की लेकिन इंद्र देवता ने तूफान की गति कई गुना और बढ़ा दी. जिसके बाद लगातार 7 दिन और 7 रात तक तूफान चलता रहा. श्री कृष्ण ने लगातार एक हफ्ते तक सभी की रक्षा की.
श्री कृष्ण की लीला देखकर इंद्र देवता समझ गए कि यह कोई सामान्य मनुष्य नहीं है. वे ब्रह्मा जी के पास गए तब ब्रह्मा जी ने उन्हें समझाया की है भगवान विष्णु का कृष्णावतार है. आपने श्री कृष्णा को अपने अहंकार की वजह से यह कृत्य करने पर मजबूर किया है. इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने तुरंत ही तूफान रोका और श्री कृष्ण से माफी मांगी.
जिसके बाद श्री कृष्ण ने समस्त ब्रजवासियों को यह आह्वान दिया कि उनका उद्देश्य केवल इंद्र देवता का अहंकार तोड़ना नहीं था. अपितु यह सिखाना था की मनुष्य सर्वस्व प्रकृति पर निर्भर है, इसलिए प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना केवल मनुष्य का ही काम है. प्रत्येक मनुष्य को यह चाहिए कि वह अपने जीवन में किसी प्राकृतिक संसाधन को बेवजह नुकसान ना पहुंचाएं. जो पीढ़ी प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान नहीं करेगी या उनका रक्षण नहीं करेगी उनका विनाश निश्चित है.