डिप्रेशन क्यों होता हैं? कैसे हम श्रीकृष्ण के जीवन से डिप्रेशन के समाधान की प्रेरणा ले सकते हैं?

डिप्रेशन और तनाव आजकल के जनजीवन की बेहद आम समस्या बनता जा रहा है. आज देश सहित पूरी दुनिया में डिप्रेशन के मरीज बेहिसाब ढंग से बढ़ते जा रहे हैं, विशेष रुप में युवा वर्ग में डिप्रेशन की समस्या काफी आम होती जा रही है.

जीवन की समस्याओं से कुंठित लोग उन्हें बर्दाश्त नहीं कर पाते और वह उनके दिमाग सहित शरीर पर बुरा असर डाल रहा है जो कई भयानक बीमारियों को न्योता दे रहा है.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि तनाव लेने से ही शरीर में नाना प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होती है, तनाव ही एकमात्र कारण है जो आज मनुष्य की उम्र घटा रहा है और उनके शरीर को छलनी कर रहा है. लेकिन यह बात भी सच है कि मनुष्य जीवन में समस्याएं आए बगैर नहीं रह सकती यह मनुष्य जीवन का विधान है कि आपको समस्याओं से लड़ना होगा.

आज हम श्रीकृष्ण के जीवन पर उनकी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए प्रेरणा लेंगे कि क्यों डिप्रेशन नहीं होना चाहिए? क्योंकि श्री कृष्ण वह परम दार्शनिक है जिन्होंने भागवत गीता जैसे महा उपदेश के माध्यम से मनुष्य जीवन की सभी समस्याओं का मार्ग सुझाया है. लेकिन उन्होंने जीवन में क्या-क्या खोया उसका हमें अंदाजा नहीं है! श्री कृष्ण का पूरा मानवीय जीवन एक संघर्ष रहा है, एक भव्य युद्ध रहा है.

इस संसार में आते ही वह अपने माता-पिता से जुदा हो गए, शायद उनकी माता उन्हें ठीक से गले भी नहीं लगा पाई तब तक उनके पिता वासुदेव उन्हें टोकरी में डाल कर नंद के घर छोड़ आए. उनके मामा ही उनके जन्म दाई दुश्मन बने. उन्होंने अपने वास्तविक परिवार का कभी सुख नहीं भोगा और उन्हें अपने हाथों से अपने मामा का वध करना पड़ा.

श्री कृष्ण यशोदा मैया और नंद कुमार के पास बड़े लाड प्यार से पाले पोशे गए वहां बड़े हुए खेले और वही उनकी राधा से मुलाकात हुई, उनके दोस्तों से मुलाकात हुई. लेकिन उन्हें गोकुल भी छोड़ना पड़ा और अपने संगीत साथी भी छोड़ने पड़े. उनकी परम प्रेयषी अंतरात्मा राधा भी उनसे छूट गई और उनकी आंखों के सामने राधा का विवाह हुआ. मथुरा जाना पड़ा और बाद में मथुरा भी त्यागनी पड़ी.

महाभारत जैसे युद्ध में उन्होंने अपनी परम भूमिका निभाकर धर्म की स्थापना करवाई लेकिन उस भीषण तबाही का सारा श्रेय भी उन्हें लेना पड़ा. माता गांधारी का भयंकर श्राप उन्हें लेना पड़ा, धर्म के रास्ते चलते हुए भी उन्हें अपने बसाई द्वारका नगरी का विनाश देखना पड़ा.

अपनी आंखों के सामने उन्होंने अपनी बसाई द्वारका नगरी को पानी में डूबते हुए देखा और उनके वंशजों को आपस में लड़ लड़ कर मरते हुए देखा. अपनी आंखों के सामने अपने पुत्रों की लाशें देखें और अपने पिता की मृत्यु देखी. बाद में उन्हें स्वयं लेट कर शिकारी के हाथों तीर खाना पड़ा, धर्म धरा के पावन शीर्ष होते हुए भी उन्हेें स्वयं अपने जीवन में कभी सांसारिक सुख नहीं मिला.

लेकिन फिर भी इन सब चीजों से दूर चिंता से दूर और घबराहट से दूर उन्होंने हमेशा अपने जीवन को उत्सव की भांति लिया और त्याग और स्नेह के साथ हमेशा अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखें. उन्होंने मानवीय जीवन की समस्याओं पर कभी ध्यान नहीं दिया और मुस्कुराते मुस्कुराते इस संसार को अलविदा कहा.

श्री कृष्ण का जीवन आज के परिपेक्ष में चिंता ले रहे लोगों के लिए एक बड़ी सीख है और उन्हें सीखना चाहिए कि यह समस्या कुछ नहीं है, क्योंकि यह सर्वविदित है कि जहां समस्या जन्म लेती है वहां उस समस्या का निवारण भी जन्म लेता है.