किसी भी मनुष्य में अपना अपमान सहन करने की क्षमता नहीं होती. आखिर अपमान निराशा का सूचक है. जब अपमानित व्यक्ति की भावना का ध्यान नहीं रखा जाता, जब उसकी शक्ति को गौण मान लिया जाता है तब व्यक्ति का अपमान होता है.
हम सभी ने जीवन में कभी ना कभी तो अपमान का सामना अवश्य किया होगा, और शायद हम सब ने अपने जीवन में काफी लोगों का अपमान भी किया होगा.
आखिर अपमान करने की यह भावना क्यों पनपती है? आखिर अपमानित व्यक्ति के साथ क्या बीतती है? आइए इन प्रश्नों का उत्तर भगवान श्री कृष्ण की अमृतवाणी के जरिए प्राप्त करने की कोशिश करते हैं.
मित्रों भगवान श्री कृष्ण के अनुसार हम सभी जीव अपने से कम बलवान का अपमान करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं. पिता अपने पुत्र का अपमान करता है तो पति अपनी पत्नी का.
वही जब पिता बूढ़ा हो जाता है तो पुत्र अपने पिता का अपमान करता है. इस प्रकार से अपमान करने की यह परंपरा लगातार चलती है, कई बार तो हमें दूसरे व्यक्ति का अपमान करने के पश्चात भी यह एहसास नहीं होता कि हमने उसका अपमान किया है.
वास्तव में हम दूसरे व्यक्ति का अपमान करके उसे हमसे कम बलवान होने का आश्वासन देते हैं. हम यह सिद्ध करते हैं कि कई मायनों में हम उससे अधिक श्रेष्ठ है और वह हमसे छोटा है.
क्या हर स्थिति में अपमान समान होता है?
मित्रों हर स्थिति में अपमान एक समान नहीं होता. यह इस बात पर निर्भर करता है कि जिस सिलसिले में हमारा अपमान हुआ है उसमें हमारी क्या भूमिका है? यानी कि अगर हमने कोई गलत काम किया है तो वह अपमान हमारे लिए गलत नहीं है. यह वास्तव में हमारे द्वारा किए गए गलत कार्य का परिणाम है. लेकिन तब क्या जब हमारी कोई गलती नहीं है लेकिन फिर भी हमें अपमान सहन करना पड़ता है?
मित्रों अपमान करने वाला अपने आप को श्रेष्ठ समझकर अपने कटु वचनों से दूसरे व्यक्ति का आत्मविश्वास तोड़ देता है. वह अपनी शक्ति सिद्ध करने की चेष्टा करता है, वह दूसरों को चुनौती देता है ताकि उसकी शक्तियां सिद्ध हो सके.
ऐसे लोग कई बार अपने पैसों के बल पर या शारीरिक बल पर नाज़ करते हैं. मित्रों ऐसी स्थिति में जब आपका बिना किसी गलती के अपमान हुआ हो आपको उसे सहन नहीं करना चाहिए.
आपको अपमान करने वाले के समक्ष निडर होकर इस बात का विरोध करना चाहिए. आप अपनी बात निडर होकर अगले व्यक्ति के सामने रखें चाहे वह इस बारे में कुछ भी प्रतिक्रिया दें.
क्योंकि यह समस्त संसार एक द्वंद है, इसलिए आपका आत्मविश्वास कभी कम नहीं होना चाहिए. यदि आपका आत्मविश्वास कम होता है तो आपको सहन करने की एक आदत हो जाती है. जिसकी वजह से आपको निरंतर छोटा होने का एहसास होगा, आपकी आत्मा कुचली जाती है.
इसलिए आप ना तो किसी का अपमान करें, क्योंकि अपमान करना एक असहज स्थिति है. इसके अलावा अपने आत्मविश्वास को बनाए रखने के लिए ना ही आप कभी दूसरे व्यक्ति का अपमान स्वीकार करें.