मकर संक्रांति 14 जनवरी को ही क्यों मनाते हैं?

मित्रों जनवरी के महीने में आने वाला मकर संक्रांति या देवदान पर्व सनातन धर्म के मुख्य त्योहारों में से एक माना गया है. पतंग के शौकीन लोग इस दिन बच्चों के साथ मिलकर आसमान में रंग बिरंगी पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं, इसके अलावा तिल और गुड़ के लड्डू भी इस दिन बेहद पसंद किए जाते हैं.

लेकिन मुख्य रूप से यह त्यौहार सूर्य की गति से संबंधित है. मकर संक्रांति का निर्धारण भी सूर्य की गति के अनुसार ही किया जाता है, क्योंकि इस दिन सूर्य पौस मास से धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करता है और इसीलिए सर्दी धीमे-धीमे कम होने लगती है.

मित्रों सूर्य 1 वर्ष में चार बार अपनी दिशा बदलता है, जिनमें से एक पर्व मकर संक्रांति है. लेकिन यहां सवाल यह पैदा होता है कि जनवरी फरवरी के महीने तो ईसाई कैलेंडर में आते हैं तो कैसे सनातन धर्म के त्योहार का निर्धारण किया जा सकता है?

मित्रों मकर संक्रांति सदियों से मनाई जा रही है. लेकिन हमेशा से मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई नहीं जाती थी. ऐसा इसलिए क्योंकि जब हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है तो प्रत्येक 72 से 90 वर्षों में पृथ्वी सूर्य से एक अंश पीछे रह जाती है.

इसीलिए प्रत्येक 72 वर्ष में मकर संक्रांति एक दिन देरी से आती है क्योंकि सूर्य एक दिन देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है. आज से लगभग 1700 साल पहले तक मकर संक्रांति 22 दिसंबर के दिन आया करती थी, लेकिन समयकाल में इसकी तिथि आगे बढ़ती गई.

और इसी वजह से संयोग वश मकर संक्रांति कई वर्षों से 14 या 15 जनवरी को ही आ रही है. यह क्रम कुछ सालों तक चलता रहेगा, क्योंकि जब भी वास्तु राशियों को जानने वाले मकर संक्रांति का मुहूर्त निकालते हैं तो हर बार यह लगभग 14 या 15 जनवरी का ही बैठता है.

कुछ वर्षों तक ऐसा चलता रहेगा और उसके बाद मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी के बजाय और आगे खिसक जाएगी. उसके बाद लंबे समय तक मकर संक्रांति की एक नई तारीख तय हो जाएगी.