मित्रों शारदीय नवरात्र बस शुरू होने को ही है, यह देवी आदिशक्ति की पूजा का महापर्व है. लेकिन हम यह भी जानते हैं कि यह वर्ष का पहला नवरात्र नहीं है, इससे पहले भी चित्र माह के अंदर एक नवरात्रा मनाया जाता है. इसलिए कह सकते हैं कि हिंदू धर्म में साल में दो बार नवरात्र मनाया जाता है.
वास्तव में रावण की मृत्यु से पहले अर्थात रावण के वध से पहले केवल एक ही नवरात्रा बनाया जाता था, वह था चैत्र नवरात्रा. परंतु भगवान श्रीराम ने रावण से युद्ध से पहले समुद्र देवता के सामने देवी आदिशक्ति की स्थापना करके 9 दिवस तक उनकी पूजा की थी, तथा दसवे दिन दशहरा को रावण का वध कर दिया था.
उन्होंने देवी आदिशक्ति की पूजा युद्ध में आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की थी, तथा उन्हें असीम आशीर्वाद प्राप्त हुआ भी तभी तो वह रावण जैसे बहिमुखी राक्षस का वध कर सके. कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि वह तो भगवान थे फिर उन्हें देवी के आशीर्वाद की क्या आवश्यकता है? लेकिन हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम उस समय मनुष्य देह में थे अतः वह संपूर्ण ब्रह्म शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकते थे.
वैज्ञानिक कारण– यदि बात की जाए वैज्ञानिक कारण की तो दोनों ही नवरात्रा वर्ष में ऋतु परिवर्तन से पहले आते हैं. चैत्र नवरात्रा के बाद ग्रीष्म ऋतु प्रारंभ होती है तथा शारदीय नवरात्रा के पश्चात शीत ऋतु प्रारंभ हो जाती है. दोनों ही समय पृथ्वी अपने ऋतु परिवर्तन के मोड़ पर होती है.
दोनों ही समय नया अनाज निकाला जाता है जिसको देवी आदिशक्ति को समर्पित करके हर्षोल्लास के साथ त्योहार मनाया जाता है. ऋतु परिवर्तन के समय यह हर्षोल्लास सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करता है. दोनों ही नवरात्रि से पहले दिन और रात लगभग बराबर होते हैं, चैत्र नवरात्रि के बाद दिन बड़ा एवं रात छोटी होती है.
वही शारदीय नवरात्रि के पश्चात दिन छोटा एवं रात बड़ी होती है. नवरात्रि के त्योहार नारी शक्ति की क्षमता का प्रतीक है, क्योंकि कई लोग नारी को अत्यंत दरिद्र समझते हैं, वह समझते हैं कि नारी केवल घर का ही काम कर सकती है. लेकिन माता के विकराल स्वरूप दर्शाते हैं कि नारी यदि ठान ले तो संपूर्ण पृथ्वी पर कोहराम मचा सकती है.
इसलिए हर परिस्थिति में नारी और पुरुष एक समान है ना तो कोई ज्यादा है ना कोई एक कम. इसलिए नारी का सम्मान अत्यंत आवश्यक है उसके बिना हमारे कुल का नाश होता है.