जप-माला में आखिर 108 मनके ही क्यों होते हैं? क्या है इसके पीछे का सच-

सनातन धर्म में ईश्वर की पूजा को आवश्यक बताया गया है. ईश्वर की पूजा करने के लिए लोग कठिन मंत्रोच्चारण के साथ जप भी करते हैं, लोग उपासना के जरिए प्रयास करते हैं कि आखिर ईश्वर उनसे प्रसन्न हो और उनका जीवन सफल हो जाए.

इसीलिए हाथ में मनको की माला लिए लोग “राम राम… का उच्चारण करते हुए नजर आते हैं. “अंगिरा स्मृति” में भी पूजा उपासना के साथ दान एवं माला जप का विशेष महत्व बताया गया है, कहा गया है कि भगवान की उपासना करते समय व्यक्ति को माला अवश्य प्रयोग में लानी चाहिए.

इसी कारण लगभग सभी लोग मनको की माला का प्रयोग करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं हर मनको की माला में 108 मनके होते हैं. लेकिन क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि आखिर माला में 108 मनके ही क्यों होते हैं? आखिर इसके पीछे का रहस्य क्या है?

अंगिरा स्मृति” के अनुसार :– मित्रों अंगिरा स्मृति में मनको की माला में 108 मनके रखने का एक बड़ा रहस्य बताया गया है. यह व्यवस्था बड़ी सोच समझकर और वैज्ञानिक तर्क पर रखी गई है. इसका सीधा सीधा संबंध हमारी दिनचर्या और हमारे सांस लेने की प्रक्रिया से है. अंगिरा स्मृति के अनुसार, एक स्वस्थ व्यक्ति पूरे दिन जितनी सांस लेता है उसका संपूर्ण संबंध माला के मनको से है.

श्वसन से क्या संबंध है मनको का ?– 1 दिन में हमारे पास कुल 24 घंटे होते हैं. इन 24 घंटों में एक स्वस्थ व्यक्ति लगभग 21600 बार सांस लेता है. लेकिन इनमें से आधा समय यानी कि लगभग 12 घंटे हमारी दैनिक क्रियाएं करने में बीत जाता है. इसका आशय हुआ कि लगभग 10800 सांसें तो हमारी दैनिक क्रियाओं में चली जाती है.

अब व्यक्ति के पास आधी सांसे यानी कि 12 घंटे में 10800 सांसें शेष बचती है. विधान के अनुसार कम से कम आधे समय में तो मनुष्य को ईश्वर का स्मरण करना चाहिए लेकिन आजकल के संदर्भ में यह संभव नहीं है. यानी कि कोई भी मनुष्य कुल 12 घंटे ईश्वर का स्मरण नहीं कर सकता. इसी वजह से आजकल की दिनचर्या में 10800 सांसों के 100वें भाग में ईश्वर के स्मरण करने का आह्वान किया गया है.

यदि साफ शब्दों में कहा जाए तो शास्त्रों में वर्णित है कि प्रत्येक मनुष्य को कम से कम 108 बार तो ईश्वर का स्मरण करना ही चाहिए. इसी वजह से माला में कुल 108 मनके पिरोए जाते हैं ताकि कोई भी मनुष्य कम से कम इस समय तक तो ईश्वर का स्मरण अवश्य करें.

संख्या “108” का महत्व :– “शिवपुराण” के पंचाक्षर मंत्र जाप के श्लोक 29 में विशेष तौर पर 108 मनको वाली माला का महत्व बताया गया है, श्लोक में बताया गया है कि ब्रह्मांड की सर्वश्रेष्ठ संख्या “108” है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ही समस्त विश्व ब्रह्मांड 12 भागों में खंडित है. जिन्हें 12 राशियां कहा जाता है, 12 राशियों के अलावा यहां 9 ग्रह भी मौजूद है.

यह समस्त 12 राशियों एवं 9 ग्रह मिलकर इस विश्व ब्रम्हांड का निर्माण करती है. यदि समस्त 12 राशियों एवं 9 ग्रहों को मिलाया जाए तो सृष्टि की संपूर्ण रचना होती है. इसीलिए यदि 12 को 9 से गुणा कर दिया जाए तो हमें संख्या 108 प्राप्त होती है. इसीलिए संख्या 108 को संपूर्ण विश्व ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करने वाली संख्या बताया गया है.

यही कारण है कि किसी भी पूजनीय धर्म गुरुओं के नाम के आगे भी “श्री श्री 108” लिखा जाता है. यह वास्तव में उनके सम्मान को बढ़ाता है और यह बताता है कि संत महात्मा होने के कारण यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है. यह संख्या सम्मान और गौरव का सूचक है. सनातन धर्म के लगभग सभी ग्रंथों में संख्या 108 का विशेष महत्व बताया गया है, हालांकि 108 लिखने की लिपियां सभी में अलग-अलग है. कहीं संस्कृत भाषा में 108 लिखा गया है तो कहीं प्राकृत भाषा में तो कहीं हिंदी भाषा में तो कहीं अन्य किसी भाषा में.