क्या आप जानते है? कैसे और क्यों समुन्द्र में डूबी थी श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी ?

भगवान श्री कृष्ण की अद्भुत नगरी द्वारिका आखिर पानी में क्यों डूब गई? आज इस बात के पूर्ण साक्ष्य भी प्राप्त हुए हैं. वैज्ञानिकों का स्पष्ट मत है कि गुजरात में सागर किनारे किसी समय कोई भव्य नगर हुआ करता था जो वर्तमान में पानी में डूबा हुआ है. यहां से कई ऐसी वस्तुएं भी बरामद की गई है जो इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि पानी के नीचे आज भी द्वारका नगरी के अवशेष शेष है. द्वारका नगरी के पानी में डूब जाने के पीछे विद्वानों ने मुख्य दो कारण बताएं हैं, जिनके बारे में हम चर्चा करने जा रहे हैं.

गांधारी का भगवान श्री कृष्ण को दिया हुआ श्राप- जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया और भगवान श्री कृष्ण पांडवों के साथ हस्तिनापुर की ओर प्रस्थान करने लगे तब संजय ने गांधारी को बताया कि पांडु पुत्र हस्तिनापुर की ओर आ रहे हैं. जब संजय ने यह बताया कि पांडु पुत्रों के साथ में कृष्ण भी हस्तिनापुर आ रहे हैं तब गांधारी गुस्से से तिलमिला उठी. क्योंकि गांधारी का मानना था की महाभारत का युद्ध केवल श्रीकृष्ण की वजह से हुआ है जिसमें उनके संपूर्ण कुल का नाश हो चुका है. गांधारी ने अपने समस्त कुल के विनाश का कारण श्री कृष्ण को ही बताया था.

उसके अनुसार यदि श्रीकृष्ण चाहते हैं तो युद्ध रुकवा सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया उन्होंने युद्ध होने दिया जिसमें महाविनाश हो चुका है. जब श्री कृष्ण हस्तिनापुर पहुंच गए और युधिष्ठिर के राज्य अभिषेक की तैयारी करने लगे तब गांधारी वहां पहुंची और उसने सारी व्यवस्था रुक जाते हुए श्री कृष्ण की आलोचना की. उसी क्षण रोते हुए गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि जिस प्रकार से मेरे कुल के सभी मेरे पुत्र आपस में युद्ध करते हुए मारे गए और मेरे कुल का नाश हो गया. उसी प्रकार से, हे ग्वाले! तुम्हारे कुल का भी नाश हो जाएगा. तुम्हारी नगरी नष्ट हो जाएगी और तुम स्वयं जंगल में किसी शिकारी के हाथों मारे जाओगे.

गांधारी की यह बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराने लगे और उन्होंने कहा माता मुझे आपका यह श्राप प्रिय है. मैं इसे सहर्ष स्वीकार करता हूं. गांधारी रोने लगी और कुछ ही क्षण में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ लेकिन श्री कृष्ण ने गांधारी को समझाया की माता के प्रसाद की भांति ही उन्हें यह श्राप प्रिय है. वहां खड़े सभी पांडू भाई रोने लगे की माता गांधारी ने माधव को यह कैसा श्राप दे दिया है! कुछ समय बाद श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर से प्रस्थान ले लिया.

क्या था वास्तविक कारण- शास्त्रों में बताया गया है कि श्री कृष्ण स्वयं मां गांधारी के श्राप के इच्छुक थे. क्योंकि पृथ्वी पर धर्म स्थापना का श्री कृष्ण का उद्देश्य पूरा हो चुका था. उन्हें जल्द ही परमधाम लौटना था. महाभारत के युद्ध में सभी दुष्टों का विनाश हो चुका था. अब केवल वही लोग शेष थे जिनके हृदय में परमात्मा बसता था और वे स्वयं धर्म की राह पर थे. लेकिन द्वारिका नगरी के लोगों ने महाभारत के युद्ध में भाग नहीं लिया था. जिस कारण से द्वारका में अभी भी वही पुराने रीति रिवाज चल रहे थे. वहां के लोगों में अभी धर्म स्थापना का कार्य होना बाकी था. इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने गांधारी के श्राप के जरिए द्वारिका में धर्म स्थापना का निश्चय किया था.

एक अन्य कारण यह भी था जब एक दिन द्वारका नगरी में कुछ संत जन भ्रमण पर निकले थे. तो वहीं पर श्री कृष्ण का 1 पुत्र अपने कुछ मित्रों के साथ अठखेलियां कर रहा था. उसने अपने मित्रों संग मिलकर ऋषियों के साथ मजाक करने की सोची. उसने स्त्री का भेष धारण कर लिया और अपने मित्रों के संग ऋषि के सामने जा प्रकट हुआ. उसने ऋषि से कहा, मुनिवर! मुझे बताइए मेरे गर्भ से क्या उत्पन्न होगा? ऋषि ने पाया कि यह युवक उनके साथ उपहास कर रहा है. ऋषि ने उससे कहा कि तुम्हारे गर्भ से एक ऐसा मुंसल उत्पन्न होगा जो तुम्हारे समस्त कुल का नाश कर देगा.

किसी की बात सुनकर तुरंत ही उसनेे क्षमा मांगी परंतु फिर क्या लाभ! कुछ ही समय में ऐसा हुआ भी. श्रीकृष्ण के पुत्र के गर्भ से एक लोहे का मुंसल उत्पन्न हुआ जो थोड़े समय में अदृश्य हो गया. इसके पश्चात कुछ ही समय में गांधारी के श्राप का असर द्वारका नगरी पर दिखने लगा था. द्वारका में आए दिन अनहोनी घटनाएं घटनी प्रारंभ हो चुकी थी. चूहों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ चुकी थी कि लोगों का जीना मुश्किल हो गया था. लोगों में आपसी द्वेष और झगड़े बढ़ चुके थे. द्वारकावासी तामसिक क्रियाओं में लीन रहने लगे थे. तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को संदेश भिजवाया कि वह उसके नगर के कुछ लोगों को किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दें. अर्जुन श्री कृष्ण के निमंत्रण पर जल्दी ही द्वारिका पहुंचे.

तब तक द्वारका वासियों ने आपस में लड़ लड़ कर आधे कुटुंब का नाश कर दिया था. श्री कृष्ण के बेटे प्रद्युम्न की भी मृत्यु हो चुकी थी. भगवान बलराम ने भी अपने प्राण त्याग दिए. और श्री कृष्ण किसी वन में जा बैठे जहां पर एक शिकारी के तीर से उन्होंने भी अपनी देह त्याग दी. अगले ही दिन श्री कृष्ण के पिता वासुदेव ने भी अपनी तीन पत्नियों के साथ देह त्याग दी जिसके बाद अर्जुन ने उनका अंतिम संस्कार किया. शेष सभी लोगों को अर्जुन अपने साथ इंद्रप्रस्थ ले गए. और देखते ही देखते कुछ ही समय में अद्भुत द्वारिका नगरी अर्जुन की आंखों के सामने पानी में डूब गई.