रामचरितमानस और संपूर्ण रामायण के संदर्भ में भगवान श्री राम और शबरी की वार्ता काफी प्रसिद्ध है. शबरी भगवान श्री राम की अनन्य भक्त थी और वह हमेशा से उनके दर्शन पाना चाहती थी. शबरी ने भगवान श्री राम के दर्शन करने को अपने जीवन का एक प्रकार से लक्ष्य बना लिया था और वह हर समय आतुर रहती थी कि मेरे प्रभु राम अवश्य आएंगे! अपनी इसी सद्भावना के कारण शबरी हमेशा भगवान श्री राम के आगमन की तैयारियां करती रहती थी.
आखिरकार वह समय भी आया जब सीता की तलाश करते करते भगवान श्री राम शबरी के पास पहुंचे. शबरी उस समय के तथाकथित एक नीची जा’ति से ताल्लुक रखती थी. उस समय के अमीर और उच्च कहे जाने वाले लोगों को शबरी जैसे लोगों के पास बैठने में थोड़ी लज्जा महसूस होती थी.
लेकिन भगवान श्रीराम ने जा’ती पाति और रंग भेद से उठकर अपनी अनन्य भक्त शबरी की सद्भावना समझी और उसके द्वारा परोसे गए झूठे बेर भी बेहद प्यार से खा लिए. कई लोगों के मन में यह प्रश्न आता है कि आखिर वह जगह है कहां पर ?
पढ़िएगा :– आज यह जगह और कहीं नहीं बल्कि हमारे गुजरात में स्थित है. अब इस स्थान को शबरीधाम कहा जाता है. कहा जाता है कि जिस समय भगवान श्री राम शबरी के आश्रम से प्रस्थान कर रहे थे तब उन्होंने शबरी को वैकुंठ में निवास का वरदान दिया था.
यह जगह गुजरात के डांग जिले के पास हुआ नवापुर रोड से सुबीर नामक गांव से 4 किलोमीटर दूर है. यहां पर एक सुंदर मंदिर बनाया गया है जहां पत्थर के तीन स्लॉट बने हुए हैं. यह वही जगह है जहां भगवान श्री राम लक्ष्मण और शबरी ने बैठकर विश्राम किया था.
इसी स्थान के पास ही झील पंपा स्थित है. बताया जाता है कि जब भगवान श्रीराम इस स्थान से प्रस्थान कर रहे थे तब शबरी ने कहा था कि झील पंपा से इस सरोवर में विचरण करने से आप एक ऐसे व्यक्ति से मिलेंगे जो आपकी माता सीता की खोज पूरी कर देगा. कहा जाता है उसी के बाद भगवान श्रीराम पंपा सरोवर के लिए रवाना हुए जहां उन्हें प्राचीन किष्किंधा में अंजनेय पहाड़ी पर हनुमान जी मिले.
यह वही स्थान था जहां पर सुग्रीव अपने भाई बाली के डर से छिपकर बैठे थे. जब हनुमान जी ने दो वनवासी युवकों को इस संबंध में आते हुए देखा तो वह ब्राह्मण रूप धारण करके उनके पास पहुंचे जिसके बाद उन्हें पता चला कि और कोई नहीं म’र्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम स्वयं है.