मित्रों धर्म और भगवान का अस्तित्व कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बहस कभी खत्म नहीं हो सकती. इस दुनिया के सभी धर्म भगवान के अस्तित्व को लेकर एकमत नहीं है. सभी धर्मों के विषय में सभी लोगों की राय अलग-अलग है. कुछ देवताओं में विश्वास करते हैं तो कुछ अल्लाह में कुछ जीसस में तो कुछ तो नास्तिक है.
इसके विपरीत विज्ञान का मत तो बिल्कुल अलग है. विज्ञान का तो कहना है कि भगवान का अस्तित्व नहीं है. इस पृथ्वी पर आज जितने भी जीव जंतु और संरचनाएं हैं वे स्वयं ही बनी है. मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग भी स्वयं एक नास्तिक के उनका कहना था कि भगवान का कोई अस्तित्व नहीं है.
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उन्होंने ब्रह्मांड के निर्माण को समझाने के लिए बिग बैंग थ्योरी का सहारा लिया. अरबों वर्षों पहले यह संपूर्ण ब्रह्मांड और प्रत्येक वस्तु एक ही बड़े गोले में समाहित थे जिसके बाद वह गोला फूटा और महा विस्फोट हुआ. इन टुकड़ों से हमारी पृथ्वी अन्य सभी ग्रहों और संपूर्ण ब्रह्मांड की रचना हुई है.
स्टीफन हॉकिंस का कहना है कि बिग बैंक से पहले समय का कोई अस्तित्व नहीं था और जो समय का अस्तित्व नहीं था तो भगवान इस ब्रम्हांड का निर्माण कैसे कर सकते हैं? लेकिन मित्रों क्या भगवान के अस्तित्व को समझाने के लिए ऐसे तर्क देना उचित है?
क्या कहते हैं हमारे वेद?-
मित्रों वेदों के अनुसार इस ब्रह्मांड का कोई अंत नहीं है. अपार ब्रह्मांड ईश्वरी रचना है. आप स्वयं सोचिए जिस प्रकार से एक कंप्यूटर सभी काम कर सकता है लेकिन इस कंप्यूटर का आविष्कार भी तो मानव ने किया है. ना कि एक दिन स्वयं ही कंप्यूटर उत्पन्न हो गया और उसने काम करना शुरु कर दिया.
इसी प्रकार से यह व्यवस्थित प्रकृति जिसमें हमारी कल्पना शक्ति से भी आगे की वस्तुएं पूर्ण व्यवस्थित हैं क्या यह स्वयं ऐसी स्थिति में आ सकती है? एक अंडे में कुछ दिनों तक केवल लार नुमा पदार्थ रहता है और कुछ ही दिन में वह द्रव्य जीव बन जाता है. यह कैसे संभव है?
मानव स्वयं इतना विकसित जीव है हमारे शरीर में तंत्रिकाओं और मांस पेशियों का ऐसा जाल है जो कि स्वयं उत्पन्न हो जाए इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते. स्वयं को वैज्ञानिक कहने वाले हमारे वैज्ञानिक इतने भी कुशल नहीं कि भगवान स्वयं प्रकट होवे और अपने अस्तित्व का सबूत दें.
वेदों के अनुसार ब्रह्मांड त्रिआयामी है. तीनों आयामों में अलग-अलग ग्रह और जीवन है. वेदों में कुल 64 से भी अधिक आयामों का वर्णन मिलता है. इसके अलावा भी वेदों में ब्रह्मांड की कई व्याख्या की गई है. यदि किसी व्यक्ति को ब्रह्मांड का संपूर्ण ज्ञान लेने की इच्छा है तो वह अवश्य ही वेद पढ़े.
यदि आप सौरमंडल की व्याख्या पड़ेंगे तो अब देखेंगे इस ब्रह्मांड की तुलना में मानव जीवन कुछ भी नहीं. यानी कि हम स्वयं भी मात्र कीड़े मकोड़े जितने है. यदि ईश्वर को पाना है तो उसके लिए वैज्ञानिक तर्क नहीं भक्तिभाव चाहिए. यदि आप उन्हें चुनौती देंगे तो किसी भी प्रकार से आपकी जीत संभव नहीं है लेकिन भक्ति भाव से ईश्वर को बड़ी आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.
ईश्वर अस्तित्व सभी रूपों में एक है यानी कि मनुष्य चाहे जितने भी धर्मों में ईश्वर का रूप अलग-अलग बताता हो लेकिन ईश्वर अलग नहीं है. इस धरती के सभी मनुष्यों का कर्ताधर्ता एक ही है. ईश्वर का स्वरूप वैसा भी नहीं है कि उन्होंने सर पर मुकुट धारण कर रखा है और मात्र चमकीले वस्त्र पहन रखे हैं.