दुर्गा पूजा देशभर में धूमधाम से मनाया जाने वाला एक त्यौहार है. यह देवी आदि शक्ति का प्रतीक है. लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दुर्गा पूजा की मूर्ति बनाने के लिए वैश्या लय की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. कुछ लोग तो यह बात पहले से ही जानते होंगे, लेकिन कुछ सोच रहे होंगे आखिर ऐसा क्यों होता है? क्योंकि वैश्या हमारे समाज में अनैतिक कार्यों को अंजाम देने वाली एक पापिनी और बेकार महिला मानी जाती है.
जानिए क्या है कारण?-
इस कारण को समझाने के लिए एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा कुछ इस प्रकार से है की एक समय में एक वैश्या हुआ करती थी जो मां दुर्गा की भक्त थी. लेकिन वैश्या होने के कारण लोग उसका तिरस्कार करते थे और उसके भक्तिभाव का मजाक उड़ाते थे. लेकिन वह लगातार मां दुर्गा की भक्ति में लीन थी. दुनिया के दुखों से मानो अब उसका लेना देना ही नहीं था.
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वह माता दुर्गा से प्रार्थना करती थी कि वह उसके इस तिरस्कार का समाधान ढूंढे. आखिरकार उसके भक्ति भाव से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने उसे वरदान दिया कि चाहे कोई मेरी कितनी भी श्रेष्ठ प्रतिमा क्यों ना बना ले, लेकिन जब तक उसमें वैश्यालय की मिट्टी का प्रयोग नहीं किया जाएगा वह अधूरी ही मानी जाएगी. माना जाता है इसी वजह से मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए वैश्यालय की मिट्टी लाई जाती है.
इस बात पर कई लोगों के और भी कई मत है. जैसे कुछ लोगों का मानना है की देह व्यापार के दलदल में फंसी महिला जिसकी कोई गलती नहीं है यानी कि जिसने किसी घोर मजबूरी में ऐसा कदम उठाया है उसे समाज से जोड़ने के लिए भी यह मान्यता रखी जाती है. एक वेश्या को कई मानसिक कष्ट और सामाजिक संताप जेलने पड़ते हैं. एक प्रकार से हमारा समाज ऐसी महिला को समाज से काट देता है. इसलिए दुर्गा पूजा के समय वहां की मिट्टी प्रयोग करके हम उन्हें भी खुश होने का अवसर प्रदान करते हैं.
हमारे पुरुष प्रधान समाज में कई महिलाएं अपनी मर्जी से वेश्यावृत्ति में शामिल नहीं हुई है कई महिलाओं को इस काम के लिए मजबूर भी किया गया है. लेकिन जिसके कारण से उन्होंने ऐसी जिंदगी चुनी है यह वास्तव में एक बड़ा अपराध है दुर्गा पूजा के समय वैश्यालय की मिट्टी प्रयोग करके शायद उनके कुछ पाप कम हो सके.
हमारे देश में सबसे प्रसिद्ध दुर्गा पूजा बंगाल की मानी जाती है. बंगाली रिवाज के अनुसार मां दुर्गा की मूर्ति बनाने के लिए गोमूत्र, सिंदूर, गोबर, लकड़ी, जूट के ढांचे, धान के छिलके, पवित्र नदियों की मिट्टी, जल और इसके साथ ही वैश्यालय की मिट्टी प्रयोग में लाई जाती है. इस सामग्री से बनी मूर्ति को सबसे सात्विक और अच्छा माना जाता है.
मां दुर्गा की मूर्ति के लिए वैश्यालय की मिट्टी का प्रयोग कोई नई परंपरा नहीं है बल्कि सदियों से ऐसा होता आया है. इसका वर्णन शारदा तिलकम्, महामंत्र महाण्व आदि में भी स्पष्ट रूप में मिलता है. एक अन्य मान्यता यह भी है की जब भी कोई व्यक्ति तवायफ के दरवाजे चला जाता है तो वह अपनी समस्त बुद्धि आंगन में ही छोड़ जाता है. उसके सभी गुण वही वेश्या के आंगन में रह जाते हैं इसलिए यह मिट्टी शुभ और अच्छी हो जाती है.